ART OF LEAVING
समय का अभाव, मानव पर प्रभाव

समय का अभाव, मानव पर प्रभाव – Spritual Scientist की नजर से
आज की जो स्थिति हो गयी है, वो समय के बीमार होने से हुई है। और इलाज तो चल रहा है, पर हम सभी लोग, खासकर वैज्ञानिक जगत ने समझा कि, public को जीवन जीना सिखाना बहुत जरूरी है। क्योंकि स्थिति तो public की दिख ही रही है। और तरह तरह के प्रभाव भी दिख रहें है, तो कारण जिसको जो समझ आ रहा है, वो उसी का निदान करने में लगे है। सारे experts अलग अलग field के।
और हम देख ही रहें हैं कि, सभी प्रयासरत हैं अपनी अपनी क्षमता वा योग्यता अनुसार । साधुवाद तो बनता ही है। परन्तु अब एक और वाक्य सुनने को मिलने लगा बाजार में
“मर्ज बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की”
पर ये वाक्य किस को समझ आया, किसको नहीं ? ये एक चर्चा का विषय हो सकता है। पर हमारा विषय नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में एक और नया वाक्य सुनने में आया है “Art of Living“। जो preacher का काम करते हैं वो ही इसको सिखाने में लग गये। और motivational speakers भी इसी काम को promote करने लग गये। और ये नाम एक आग की तरह से फैल गया।
तो हमे इसको समझना ही पड़ेगा, नहीं तो आगे नहीं बढ़ सकते।
“Art of Living” में सुबह सैर, योगा, प्राणायाम, सुदर्शन क्रिया, gym, भजन कीर्तन समूहों में, dance classes आदि बहुत कुछ चल रहा है! पर बात वही कि, जीवन जीना तो थोड़ा improve हुआ परंतु समस्यायें तो सारी की सारी वहीं रहीं। तो लोग समस्याओं के साथ रहना सीखना ही “Art of Living” को मान कर जीवन बिताने लगे।
राम भलि करेगा बेटा चढ़ जा सूली पर और society चल ही रही है।
अब ये सब समझने के बाद मुझे लगा समस्यायों के साथ रहना सीखना इतना उपयोगी नहीं है society के लिये। और हम तो समय को ठीक करने के लिये निकले हैं। तो हम इस चक्कर में पड़े नहीं और आगे चल पड़े।
अब एक नयी शब्दों की जानकारी सामने आयी है। और सबसे interesting मिला Art of Leaving ।
यानि, छोड़ना सीखो !अब ये तो कमाल का system है। और जब समझने की कोशिश की, तो बताया गया लोगों के द्वारा कि, इसमें सबसे जरूरी समझने वाली बात आयी कि, जब हमे इस शरीर को छोड़ना है, तब कष्ट ना हो। यानि बीमार न रहूं, किसी के ऊपर बोझ ना बनूं, जो सीखना जरूरी है। और ये तब आता है, जब हमारे पास इतनी मानसिक शक्ति हो, जिससे हम छोड़ना सीख सकें।
उस मानसिक शक्ति को विकसित करने की विधि सीखना ही “Art of Leaving का हिस्सा है। और खास बात ये है कि, आपकी प्रकृति और प्रवृति समझ कर ही विधि सिखाई जाती है। ये समझने वाली बात है कि, विधि तो general purpose है। परंतु किसको कब और कितनी बार करनी है खड़े होकर करनी है, बैठ कर या लेट कर आदि; यहां तक कि समूह में करना है, या अकेले करना है। घर में या park में या गाड़ी में भी कर सकते हो, आदि।
पर, यदि मैं बिना दूसरों पर बोझ बने, अपने शरीर को छोड़ पाँऊ तो इस से बेहतर तो कुछ हो ही नहीं सकता।
अब, क्योंकि समय समाप्त हो रहा है, तो मुझे अब ये episode को यहीं पर समाप्त करना होगा। और बाकी का अगले episode में लिखा जायेगा, तब तक के लिये :
आपके अपने Time scientist का प्रणाम.
दिन भर तो था सूरज का डेरा, चाँदनी लायेगी अब अंधेरा
इन दो लाइनों के साथ ही आज का episode पूर्ण करते है। आप suggestion या प्रश्न जो भी देना चाहें, तो निमंत्रण हैं।

“समय बदल दो दुनिया का उद्धार हो जाएगा, फिर से मानव दुनिया का सरदार हो जाएगा “
एक आम इन्सान की एक आम शिकायत ~
- समय नहीं है !
- काम पूरा कैसे हो ?
- समय पर नहीं पहुंचा, बहुत ट्रैफिक था ।
- समय पर सैलरी नहीं मिली तो EMI कैसे भरूँ ?
- परिवार को समय नहीं दे पाता काम बहुत है !
- आफिस में एक मिनट की भी फुरसत नहीं मिली, तो खाना कैसे खाता ?
उपरोक्त सभी वाक्य आमतौर पर हर जगह सुनने को मिल जायेंगे और एक और जो बहुत ही common है, समय बहुत खराब चल रहा है किसी पर भरोसा ही नहीं किया जा सकता !
परंतु मुझे कभी ऐसा नहीं प्रतीत हुआ। पता नहीं क्यों, पर हो सकता है मेरी किस्मत ही बहुत अच्छी हो, जो मैं अकेला ऐसा रहा जिसकी किस्मत किसी खास कलम से लिखी गई हो।
बस, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए मैने निर्णय लिया कि, मैं ही कोशिश करता हूं, कुछ ऐसा करने की, जिससे समय जो खराब हो गया है उसको ठीक कर दूं । तो बाकि सारी समस्यायें शायद अपने आप ठीक हो जायें। क्योंकि सभी समस्यायें देखने के बाद जो comman शब्द निकल कर आया वो समय ही था। और मैं लग गया इस काम में अकेले ही क्योंकि मुझे लगा मैं बहुत अच्छी किस्मत लिखवा कर लाया है। ये सारी बातें 2003 की है तभी मैंने ये काम शुरु किया था। इस विश्वास, कि मैं यह काम कर पाऊंगा, की जड़ था, मेरा समय पर भरोसा। कि समय कभी खराब नहीं हो सकता । जरूर ही सारे लोग झूठ बोल रहे हैं। और मैंने सोचना समझना शुरू किया उपरोक्त लिखे वाक्यों को और अकेला ही था तो किसी से भी चर्चा करने का कोई कारण था ही नहीं। ना ही किसी को ये समझाने की भी जरूरत थी कि समय कभी खराब नहीं हो सकता!
यानि फालतू के सारे ही वार्तालापों से निजात मिल गयी! और मेरा काम शुरू हो गया।
ये एक श्रृंखला बनेगी तो आपको थोड़ा समय तो निकालना ही पड़ेगा कि आखिर में समय को ठीक कर पाया। यकीन मानिये मुझे Time Scientist जनक नवीन समय चक्र की उपाधि से नवाजा गया। 15 July 2006 को हिसार में जाने माने वैज्ञानिकों वा कई प्रोफेसर के मध्य में एक बहुत ही अच्छे कार्यक्रम में जो किसान धाम में रखा गया था जहाँ किसानों को जैविक खेती की ट्रेनिंग भी जाती है।
आपका ही एक साथी हूं मैं भी बस किस्मत शायद अच्छी लिखी गयी। तो अगले अंक में आगे की गाथा के साथ फिर आऊंगा आपके समक्ष ।
Time Scientist Prof. Ashwani Agarwal

“समय बदल दो दुनिया का उद्धार हो जाएगा, फिर से मानव दुनिया का सरदार हो जाएगा “
पिछले अंक में मैंने कारण लिखा था, समय को ठीक करने का Contract मैंने क्यों लिया।
अपनी मर्जी से, क्योंकि मुझे भगवान मिले ही नहीं, जिनसे मैं ये काम करने की अनुमति लेता। क्योंकि मैं कृष्ण को ही अपना मन मानता हूं और बुद्धि को शिव और हृदय को ऊर्जा यानी महेश, बस फर्क यह है कि, उस हृदय वाली ऊर्जा को नाम मैने दिया कृष्णांश, यानी कृष्ण है अंश जिसका ।
चलिये अब आगे की यात्रा शुरू करते हैं।
समय की यात्रा, या समय में यात्रा – जो भी समझा जाये; कारण एक माना है इस यात्रा का, समय को ठीक करना यानि समय बीमार है और सारी पृथ्वी के रहने वालों की जिन्दगी को हैरान परेशान कर रखा है बिना कारण। या कारण जो भी हो तो, उस कारण का निवारण अब अति आवश्यक हो गया है और किस्मत का मैं धनी हूं तो निवारण करना मेरे लिये तो सम्भव है ही।
अगला कदम मैंने जैसे ही रखा तो तपाक से एक और वाक्य सुनने में आया कि, वर्तमान में जीना सीखो। भूतकाल में कब तक अटके रहोगे और भविष्य की चिन्ता में क्यों जीवन बरबाद कर रहे हो, पता नहीं। कल हो या ना हो। और ये वाक्य काफी था मुझे ये समझाने हेतु कि तुझे कोई और काम का काम नहीं है जो ये फालतू का काम ले कर चल पड़ा है।
छोड़ समय को ठीक करना जैसी मूर्खता भरी बात को, और अपनी योग्यता अनुसार काम कर पैसे कमा मौज कर। और एक बार को मुझे भी लगा यही, परन्तु किस्मत को आगे रखकर जब मैने सोचा, तो लगा मैं ही एक ऐसा प्राणी हूं पृथ्वी पर जो ये काम कर सकता है। अन्यथा बस बीमार समय को ही झेलते रहो, और मैने उपरोक्त वाक्य को नकार दिया। और आधार बनाया कि, भविष्य की चिन्ता करोगे तो वर्तमान को आनंद पूर्वक बिताया जा सकता है।
इस आधार को बल मिला विवाह की प्रक्रिया को समझ कर। जब भी विवाह के लिये वर या वधु की खोज शुरू की जाती है तो सबसे अधिक सबसे पहले और सबके द्वारा ही विचार किया जाता है कि भविष्य कैसा रहेगा किस तरह के spouse की खोज करी जाये और उसी आधार पर resume बनाया जाता है, जिससे उसी प्रकार के लोग सम्पर्क करें।
दूसरा point मुझे मिला कि क्या शिक्षा दिलवाई जाये बच्चे को, जिससे वो भविष्य में अपने पैरो पर खड़ा हो सके, किसी पर निर्भर ना रहना पड़े ! और भी कई सारे कारण मिले जिस से मुझे सांत्वना मिली, आत्मविश्वास बढ़ा कि, मैं सही दिशा में चलने लगा हूँ।
पिछले अंक में मैंने कारण लिखा था, समय को ठीक करने का Contract मैंने क्यों लिया।
अपनी मर्जी से, क्योंकि मुझे भगवान मिले ही नहीं, जिनसे मैं ये काम करने की अनुमति लेता। क्योंकि मैं कृष्ण को ही अपना मन मानता हूं और बुद्धि को शिव और हृदय को ऊर्जा यानी महेश, बस फर्क यह है कि, उस हृदय वाली ऊर्जा को नाम मैने दिया कृष्णांश, यानी कृष्ण है अंश जिसका ।
चलिये अब आगे की यात्रा शुरू करते हैं।
समय की यात्रा, या समय में यात्रा – जो भी समझा जाये; कारण एक माना है इस यात्रा का, समय को ठीक करना यानि समय बीमार है और सारी पृथ्वी के रहने वालों की जिन्दगी को हैरान परेशान कर रखा है बिना कारण। या कारण जो भी हो तो, उस कारण का निवारण अब अति आवश्यक हो गया है और किस्मत का मैं धनी हूं तो निवारण करना मेरे लिये तो सम्भव है ही।
अगला कदम मैंने जैसे ही रखा तो तपाक से एक और वाक्य सुनने में आया कि, वर्तमान में जीना सीखो। भूतकाल में कब तक अटके रहोगे और भविष्य की चिन्ता में क्यों जीवन बरबाद कर रहे हो, पता नहीं। कल हो या ना हो। और ये वाक्य काफी था मुझे ये समझाने हेतु कि तुझे कोई और काम का काम नहीं है जो ये फालतू का काम ले कर चल पड़ा है।
छोड़ समय को ठीक करना जैसी मूर्खता भरी बात को, और अपनी योग्यता अनुसार काम कर पैसे कमा मौज कर। और एक बार को मुझे भी लगा यही, परन्तु किस्मत को आगे रखकर जब मैने सोचा, तो लगा मैं ही एक ऐसा प्राणी हूं पृथ्वी पर जो ये काम कर सकता है। अन्यथा बस बीमार समय को ही झेलते रहो, और मैने उपरोक्त वाक्य को नकार दिया। और आधार बनाया कि, भविष्य की चिन्ता करोगे तो वर्तमान को आनंद पूर्वक बिताया जा सकता है।
इस आधार को बल मिला विवाह की प्रक्रिया को समझ कर। जब भी विवाह के लिये वर या वधु की खोज शुरू की जाती है तो सबसे अधिक सबसे पहले और सबके द्वारा ही विचार किया जाता है कि भविष्य कैसा रहेगा किस तरह के spouse की खोज करी जाये और उसी आधार पर resume बनाया जाता है, जिससे उसी प्रकार के लोग सम्पर्क करें।
दूसरा point मुझे मिला कि क्या शिक्षा दिलवाई जाये बच्चे को, जिससे वो भविष्य में अपने पैरो पर खड़ा हो सके, किसी पर निर्भर ना रहना पड़े ! और भी कई सारे कारण मिले जिस से मुझे सांत्वना मिली, आत्मविश्वास बढ़ा कि, मैं सही दिशा में चलने लगा हूँ।
Time Scientist Prof. Ashwani Agarwal

- कृष्ण आये तो पहचाना नहीं
- कृष्णांश आये तो माना नहीं
- राम आये थे जाना नहीं

“समय बदल दो दुनिया का उद्धार हो जाएगा, फिर से मानव दुनिया का सरदार हो जाएगा “
3rd episode में एक बहुत ही उपयोगी ज्ञान या विज्ञान समझ में आया कि, बहुत ही भ्रम की स्थिति में जी रहा है मानव। यानि, काम तो सारे भविष्य को ध्यान में रखते हुए कर रहा है, परन्तु वर्तमान को पकड़ के रखना चाहता है, जो कि संभव नहीं।
लेकिन बाजार कह रहा है, अरे संभव है!! देख, मेरा रास्ता पकड़ ले, तो तू वर्तमान को पकड़ सकता है। और अपना सारा तन मन धन लगा देगा तभी ये सम्भव है, अन्यथा मुश्किल है।
और जब मैंने समझने की कोशिश की, तन मन धन लगा तो दूंगा, पर धन लाने के लिये तो मुझे अपने तन को किसी और के पास ले जाना पड़ेगा।
मन को उस काम में लगाना पड़ेगा जो वो करवाएगा, तो उतने घंटे के लिये तो मेरा तन व मन अपने साथ नहीं होगा। तो मैं क्या करूँ, आप ही बताओ।
अब यहाँ पर Preacher भी निरूतर सा हो जाता है, क्योकि उसी ने कहा था, तन मन धन से समर्पण करो, तभी समझ खुलेगी। और जब समझ threshold को पार कर जायेगी, तो निर्णय हो जायेगा क्या करना करवाना है।
यहाँ Preacher कामयाब होने लग गये, क्योंकि उन्होंने सिर्फ ये guide किया कि समझ खोलो, और खोलने का रास्ता बता दिया। बाकी कह दिया, भगवान पर भरोसा रखो, जो होगा अच्छा ही होगा। बदले में Preacher को तन मन धन की प्राप्ति हो गयी, दोनों पक्ष प्रसन्न रहने लगे।
अब इसका परिणाम क्या हुआ ? कि आपको किसी Motivational speaker की जरूरत लगने लगी, अपना काम यानि तन मन को कैसे divide करूँ, कि preacher वाला काम भी कर पाऊं और धन भी कमा पाऊं। और धीरे धीरे बच्चों को भी साथ ही लगा लिया, कि तेरा भविष्य अपने आप बन जायेगा, बस लगा रह हमारे साथ। जब तक बच्चे थे, तब तक चलता रहा। जैसे ही बड़े होने लगे, तो उन्हें लगने लगा हमें वो भविष्य नहीं चाहिये जो हमारे माता पिता का था, तो उन्होंने सब को छोड़ दिया।
और अपना भविष्य अपने आप बनाने में लग गये। अब यहां माता पिता ने या समाज ने या Preacher के यहाँ के वातावरण ने बच्चे को कहना शुरू किया कि, जिन्होंने तुम्हें जन्म दिया उन्हे तुम कैसे छोड़ सकते हो इस तरह से ?
यानि, बहुत सारी वो बातें जो एक भ्रम पैदा कर रहीं है दोनों तरफ। यानि जिनको कहा जा रहा है और जो कर रहे हैं। क्योंकि, जब कहने वाले अपने भविष्य बनाने में लगे थे तो बच्चों की तरफ ध्यान गया ही नहीं। और अब बच्चे भविष्य बनाने में लगे हैं तो ये, यानि कहने वाले उनको रोक रहे हैं, अपने पास बुला रहे हैं।
और सारी पृथ्वी के मानव इसी उलझन में जीवन बिता रहें हैं तो जीवन व्यर्थ सा होता दिखने लगा है।
इस episode का समय समाप्त हो गया, तो मुझे भी रुकना ही पड़ेगा। और अगले episode की तैयारी करनी होगी। तो मिलते हैं अगले episode में।
आपका अपना
Time Scientist Prof. Ashwani Agarwal
